सवर्ण गरीबों को मिलेगा 10% आरक्षण, आज संसद में बिल लाएगी केंद्र सरकार
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार के बाद मोदी सरकार ने जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा...
सवर्ण गरीबों को मिलेगा 10% आरक्षण, आज संसद में बिल लाएगी केंद्र सरकारराजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार के बाद मोदी सरकार ने जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा...राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार के बाद मोदी सरकार ने जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण देने का फैसला किया है। एक केंद्रीय मंत्री के अनुसार सवर्णों के अलावा हिंदू, मुस्लिम जैसे विभिन्न धर्मों के गरीब लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले लिए इस फैसले से विभिन्न वर्गों का कुल आरक्षण 49.5% से बढ़कर 59.5% हो जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय की है।
सूत्रों ने बताया कि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान जोड़ने के लिए सरकार मंगलवार को शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन संसद में संविधान संशोधन बिल पेश करेगी। माना जा रहा है कि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटे जाने से नाराज सामान्य वर्ग को लुभाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। आमतौर पर कैबिनेट की बैठक बुधवार को होती है। लेकिन शीत सत्र खत्म होने से एक दिन पहले सोमवार को ही बैठक बुलाकर आनन-फानन में प्रस्ताव मंजूर किया गया। भाजपा का वोट बैंक मानी जाने वाली सवर्ण जातियां आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करती रही हैं।
एससी-एसटी एक्ट से नाराज सवर्णों को लुभाने का प्रयास, शिक्षा-नौकरी में लाभ, सभी वर्णों का आरक्षण 49.5% से बढ़कर 59.5% हो जाएगा
10% आरक्षण के यह पैमाने08 लाख रु. से कम हो सालाना आमदनी05 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि न हो।1000 वर्ग फीट से बड़ा फ्लैट ना हो।100 गज से छोटा घर हो नोटीफाइड म्यूनिसिपलिटी में200 गज से छोटा घर हो
नॉन नोटिफाइड म्यूनिसिपलिटी में
कांग्रेस ने कहा- चुनावी नौटंकी
सरकार ने 4 साल 8 महीने तक यह क्यों नहीं सोचा? आचार संहिता लागू होने से सिर्फ तीन महीने पहले यह चुनावी नौटंकी है। - अभिषेक मनु सिंघवी, कांग्रेस
राजस्थान : 2008 में पारित हुआ सवर्णों को 14% आरक्षण का बिल
2008 में तत्कालीन भाजपा सरकार में सवर्ण गरीबों को 14 प्रतिशत आरक्षण का बिल पारित हुआ था। तब यह सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने वाला देश का पहला बिल था। 2008 में गहलोत सरकार सत्ता में आई तो इस बिल के दो हिस्से कर दिए गए। पहले हिस्से में गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। यह मामला अभी कोर्ट में अटका हुआ है। वहीं सवर्णों के आरक्षण का मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके बाद 2013 में फिर से भाजपा की सरकार बनी। तब सांगानेर विधायक घनश्याम तिवाड़ी इसी को प्राइवेट बिल के तौर पर विधानसभा में लाए लेकिन इस बार भी यह ठंडे बस्ते में चला गया।
हरियाणा-महाराष्ट्र के बिल कोर्ट में अटके : आरक्षण की मांग को लेकर मराठा, कापूस, गुर्जर व जाट जैसे प्रभावशाली समुदाय लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। हरियाणा व महाराष्ट्र में सरकारों ने इन वर्गों को 10% आरक्षण देने के कानून भी बनाए। लेकिन मामला कोर्ट में अटक गया।
संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं
आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करना पड़ेगा। संविधान में अभी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के अलावा सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का प्रावधान है। इसमें कहीं भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।
पासवान बोले- ऐतिहासिक फैसलासवर्ण जातियों के गरीबों को आरक्षण देने की मांग संविधान सभा में भी की गई थी। पहली बार सरकार सवर्ण गरीबों को संवैधानिक मान्यता देने जा रही है। - रामविलास पासवान, केंद्रीय मंत्री
बिल आज पारित होना मुश्किल
संविधान संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई सदस्यों का समर्थन जरूरी है। मंगलवार को संसद में यह बिल पारित होने की संभावना बहुत कम है। राज्यसभा में तो सत्ता पक्ष के पास जरूरी संख्या बल भी नहीं है। हालांकि, भाजपा के रणनीतिकार मान रहे हैं कि विपक्ष ने इसका विरोध किया तो उसे समाज के एक बड़े वर्ग की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
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